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Tuesday, January 19, 2010

एड्स के मामले में मणिपुर की राह पर चला किशनगज

 नेपाल सीमा पर बसे  किशनगंज  को एड्स के मामले में सबसे सवेदनशील मानते हुए सरकार व यूनीसेफ के सहयोग से किशनगंज में एड्स नियंत्रण कार्य  2003 में शुरू  तो हुआ  परन्तु जिले में एड्स रोगियों की बढती तादाद इस काम में जुटे सघतनो के  कागजी काम पर मोहर लगते है.  वर्ष 2009 तक  35 गुणा एचआईवी पोजिटिव मरीज की तादात जिले में हो जाना इस बीमारी के जिले में गभिर रूप ले लेने की तरफ ईशारा  तो करता ही है ।सरकारी योजनाएओ की  राशी  का किस तरह बन्दर बाट  होता है यह इसका जीता जागता उदहारण है , जिले में वर्ष 2009 में सरकारी आंकड़ा के मुताबिक 246 मरीज है जबकि वर्ष 2003 में यह संख्या  सात था।   कहते है न ज्यो-ज्यो ईलाज किया गया त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया । वर्ष 2002 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यूनीसेफ को भारत के सात जिलों को एड्स की रोकथाम व लोगों में जागरूकता लाने के लिए बिहार के एक मात्र जिला को चुना और चरका प्रोग्राम चलाया गया। पांच वर्षो तक चरका प्रोग्राम जिले में संचालित था और करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाया गया। जिसकी पुष्टि उपलब्ध कराये गए सरकारी आंकड़ों से होती है।  वर्ष 2003 में एचआईवी पोजिटिव 07 जो 2004 में 15, 2005 में 47, 2006 में 132, 2007 में 151, 2008 में 153, 2009 में 246 से अधिक हो चुकी है। तमाम सरकारी व्यय एवं एनजीओ द्वारा किए गए प्रयास को मूंह चिढ़ाते ये आंकड़े समस्त प्रयासों की विफलता की कहानी कहते हैं। आंकड़ों का बढ़ता क्रम भविष्य की भयावह तस्वीर प्रस्तुत करता है। बिहार के पूर्वोत्तर कोने में स्थित किशनगंज जिला जो कि पूर्वोत्तर राज्यों का शेष भारत से जुड़ने का एक मात्र गलियारा है, मणीपुर की राह पर चल चुका है। यह एड्स के संदर्भ में उभर कर सामने आ रहा है। फिलवक्त जिले में एड्स कंट्रोल के लिए जिला एड्स कंट्रोल सोसाइटी के अलावे आधा दर्जन स्वयं सेवी संस्था काम कर रहा है। समस्याओं को जड़ में जाकर कारगर प्रयास करना होगा और बाहर से आने वाले लोगों पर सामाजिक जागरूकता लाकर आवश्यक स्वास्थ्य का परीक्षण करना नितांत आवश्यक है। एक सवाल सबों दिलों में कचोट रहा कि वर्ष 2002 में यूनीसेफ द्वारा किशनगंज में चरका परियोजना चलायी गई और करोड़ों रूपये खर्च के बाद नियंत्रण के बजाय बढ़ोत्तरी ही हुई । इससे साफ दर्शाता है कि चरका का कार्य जमीन के बजाय कागजों पर ही हुआ है

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